ऐसा बनना सँवरना मुबारक तुम्हें कम से कम इतना कहना हमारा करो
ऐसा बनना सँवरना मुबारक तुम्हें कम से कम इतना कहना हमारा करो
फ़ना निज़ामी कानपुरी
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ऐसा बनना सँवरना मुबारक तुम्हें कम से कम इतना कहना हमारा करो
चाँद शरमाएगा चाँदनी रात में यूँ न ज़ुल्फ़ों को अपनी सँवारा करो
ये तबस्सुम ये आरिज़ ये रौशन जबीं ये अदा ये निगाहें ये ज़ुल्फ़ें हसीं
आइने की नज़र लग न जाए कहीं जान-ए-जाँ अपना सदक़ा उतारा करो
दिल तो क्या चीज़ है जान से जाएँगे मौत आने से पहले ही मर जाएँगे
ये अदा देखने वाले लुट जाएँगे यूँ न हँस हँस के दिलबर इशारा करो
फ़िक्र-ए-उक़्बा की मस्ती उतर जाएगी तौबा टूटी तो क़िस्मत सँवर जाएगी
तुम को दुनिया में जन्नत नज़र आएगी शैख़ जी मय-कदे का नज़ारा करो
ख़ूबसूरत घटाओं-भरी रात में लुत्फ़ उठाया करो ऐसी बरसात में
जाम ले कर छलकता हुआ हाथ में मय-कदे में भी इक शब गुज़ारा करो
काम आए न मुश्किल में कोई यहाँ मतलबी दोस्त हैं मतलबी यार हैं
इस जहाँ में नहीं कोई अहल-ए-वफ़ा ऐ 'फ़ना' इस जहाँ से किनारा करो
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