पास-ए-अदब मुझे उन्हें शर्म-ओ-हया न हो
पास-ए-अदब मुझे उन्हें शर्म-ओ-हया न हो
नज़्ज़ारा-गाह में असर-ए-मा-सिवा न हो
माना मिरी क़ुबूल नहीं है दुआ न हो
इतना ही हो कि उस पे असर ग़ैर का न हो
क्यूँ कर कहूँ कि पास उन्हें ग़ैर का न हो
जो ग़ुस्से में भी कहते हैं तेरा बुरा न हो
इस पर्दे में तो कितने गिरेबान चाक हैं
वो बे-हिजाब हों तो ख़ुदा जाने क्या न हो
तकिए में क्या रखा है ख़त-ए-ग़ैर की तरह
देखूँ तो मैं नविश्ता-ए-क़िस्मत मिरा न हो
मिल कर गले वो करते हैं ख़ंजर की तरह काट
इस पर भी कह रहा हूँ कि मुझ से जुदा न हो
मूसा का हाल देख के दिल काँपने लगा
अब तो दुआ है उन से मिरा सामना न हो
वो बार बार मेरा लिपटना शब-ए-विसाल
उन का झिजक के कहना कोई देखता न हो
'बेदम' की ज़िंदगी है इसी छेड़-छाड़ में
तर्क-ए-वफ़ा की तरह से तर्क-ए-जफ़ा न हो
- पुस्तक : jigar parah armagaan bedam shaah (पृष्ठ 13)
- रचनाकार : bedam shaah waarsii
- प्रकाशन : Aagraakhbar paress
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