पहलू में वो मह और शब-ए-महताब का 'आलम
पहलू में वो मह और शब-ए-महताब का 'आलम
धर्मपान गुप्ता वफ़ा देहलवी
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पहलू में वो मह और शब-ए-महताब का 'आलम
क्या कहिए ये बेदारी है या ख़्वाब का 'आलम
इक चाँद सा मुखड़ा नज़र आया था किसी रात
आँखों में है अब तक शब-ए-महताब का 'आलम
साग़र में पड़ा 'अक्स-ए-रुख़-ए-साक़ी-ए-महवश
पैदा हुआ महताब में महताब का 'आलम
बिखरे हुए गेसू हैं चमकते हुए 'आरिज़
कुछ अब्र का है कुछ शब-ए-महताब का 'आलम
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