परी तुम हो मिरी जाँ हूर तुम हो मह-लक़ा तुम हो
परी तुम हो मिरी जाँ हूर तुम हो मह-लक़ा तुम हो
अबुल बक़ा सब्र सहारनपुरी
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परी तुम हो मिरी जाँ हूर तुम हो मह-लक़ा तुम हो
जहाँ में जितने हैं माशूक़ उन सब से जुदा तुम हो
सरापा नाज़ हो लाखों में यकता दिलरुबा तुम हो
मैं हैराँ हूँ समझ में कुछ नहीं आता कि क्या तुम हो
ख़ुदा ने अपने हाथों से तुम्हें ऐसा बनाया है
ख़ुदा की शान भी कहती है हाँ शान-ए-ख़ुदा तुम हो
न बोलो कारवान-ए-ज़िंदगी अब लुटने वाला है
चलो इस तरह से गोया दराए-बे-सदा तुम हो
तुम्हारा मर्तबा अल्लाहु-अकबर क्या ठिकाना है
तुम्हें जितना मैं समझा हूँ कहीं उस से सिवा तुम हो
तुम्हारी बे-रुख़ी का भी मुअ'म्मा हल नहीं होता
कि आलम-आश्ना हो और फिर ना-आश्ना तुम हो
मुबारक मुनइमों को दौलत-ए-दुनिया हो आलम में
हमारी आरज़ू तुम हो हमारा मुद्दआ तुम हो
हर इक ग़म्ज़ा तुम्हारा आशिक़ों को ज़ब्ह करता है
कि ख़ुश-अंदाज़ हो ख़ुश-नाज़ हो और ख़ुश-अदा तुम हो
हमीं दोनों से है मरबूत इश्क़-ओ-हुस्न का आलम
कि इस की इब्तिदा मैं हूँ और इस की इंतिहा तुम हो
तुम्हीं से कश्ती-ए-जान-ए-हज़ीं आएगी साहिल तक
मुहीत-ए-इश्क़ में ऐ हज़रत-ए-दिल नाख़ुदा तुम हो
मय-ओ-माशूक़ से क्या बात कुछ मतलब नहीं रखते
बताओ तो कहाँ के 'सब्र' ऐसे पारसा तुम हो
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