पिया जिन मुख तिरा देखा उसे फिर क्या दिखाना है
पिया जिन मुख तिरा देखा उसे फिर क्या दिखाना है
चखा जिन रस तिरे लब का उसे फिर क्या चखाना है
हुआ है दिल मिरा कोला बिरह की आग के भीतर
असी जरती अंगारी कूँ कहो अब क्या जराना है
न आक़िल हूँ न दीवाना न महरम हूँ न बेगाना
असे बेहोश बे-ख़ुद कूँ कहो फिर क्या बताना है
जुदाई से जरे आलम जरूँ मैं रू-ब-रू हर दम
असे मजनूँ दिवाना कूँ कहो फिर क्या सताना है
गिरा कर शीशा-ए-दिल कूँ लगे जौर-ओ-जफ़ा करने
ख़ुदा से टुक डरो ज़ालिम गिरे कूँ क्या गिराना है
पिया का दर्स जिन पाया होया नादाँ न जाने कुछ
लिया जिन सबक़ वहदत का उसे फिर क्या पढ़ाना है
फ़ना के बह्र-ए-क़ुल्ज़ुम मूं पड़ा ये दिल गया गुज़रा
न जागे रोज़-ए-महशर के उसे फिर क्या जगाना है
पिया जिन जाम-ए-वहदत का न राखे ख़ौफ़ सूली का
अनल-हक़ जब होया अल-हक़ उसे फिर क्या डराना है
सुनूँ हर जा सुख़न तेरा देखूँ सब मूं रुख़न तेरा
तिरा हूँ मैं सजन तेरा मुझे फिर क्या लुभाना है
'ग़ुलाम'-ए-शाह-ए-फ़ाज़िल का कहे दिल सूँ सुनो यारो
देखा मैं शह मुहीउद्दीं मुझे फिर क्या दिखाना है
- पुस्तक : Ghazal Usne Chhedi (Part-1) (पृष्ठ 239)
- रचनाकार : Farhat Ehsas
- प्रकाशन : Rekhta Books (2016)
- संस्करण : 2016
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