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क़ुर्बतें अपनी जगह हैं फ़ासले अपनी जगह

क़ैसर अज़ीज़

क़ुर्बतें अपनी जगह हैं फ़ासले अपनी जगह

क़ैसर अज़ीज़

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    क़ुर्बतें अपनी जगह हैं फ़ासले अपनी जगह

    राहतें अपनी जगह हैं हादसे अपनी जगह

    दर-ब-दर हम ही भटकते फिर रहे हैं आज तक

    राहबर अपनी जगह हैं रास्ते अपनी जगह

    वक़्त क्यों बर्बाद करते हो किसी के वास्ते

    दर्द-ए-दिल अपनी जगह है मरहले अपनी जगह

    क्या ज़रूरी है किसी का उस पे पैहम सोचना

    फ़ितरतें अपनी जगह हैं मशवरे अपनी जगह

    क्यों परेशाँ हो रहे हो दोस्तों ये सोच कर

    ज़ाविए अपनी जगह हैं दाएरे अपनी जगह

    ख़ारज़ारों से गुज़र 'क़ैसर' मगर ये सोच कर

    राह-रौ अपनी जगह हैं रास्ते अपनी जगह

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