रहबरों में सर-फिरे हैं आगही में कुछ नहीं
रहबरों में सर-फिरे हैं आगही में कुछ नहीं
रास्तों में हादसे हैं ज़िंदगी में कुछ नहीं
ऐ मिरे मोनिस तुझे अपना कहूँ तो किस तरह
क़ुर्बतों में फ़ासले हैं दोस्ती में कुछ नहीं
अपनी सोचों के बदल दो अब हर इक अंदाज़ को
हौसलों में वलवले हैं बे-हिसी में कुछ नहीं
नेक-ओ-बद में फ़र्क़ अब कैसे यहाँ महसूस हो
पत्थरों में आइने हैं बरतरी में कुछ नहीं
तुम जो हो हमराह मेरे ज़िंदगी की राह में
मरहलों में क़ुमक़ुमे हैं तीरगी में कुछ नहीं
प्यार के रिश्ते ये राहत तोड़ मत देना कभी
राब्तों में सिलसिले हैं बरहमी में कुछ नहीं
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