रोज़ अपना बयाँ बदलता है
रोज़ अपना बयाँ बदलता है
आदमी है निशाँ बदलता है
लाख इंसान ज़ोर करता है
वक़्त फिर भी कहाँ बदलता है
आदमी कुछ भी कर नहीं पाता
वक़्त जब आसमाँ बदलता है
जाने किस के इशारे चलते हैं
ये समाँ ये जहाँ बदलता है
आग से रिश्ता उस का है क़ाएम
कब ये रिश्ता धुआँ बदलता है
आइना जो दिखा वो कहता है
ये भला कब ज़बाँ बदलता है
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