साथ साथ अहल-ए-तमन्ना का वो मुज़्तर जाना
साथ साथ अहल-ए-तमन्ना का वो मुज़्तर जाना
अल्लाह अल्लाह तिरा बज़्म से उठ कर जाना
रहबरी कर के मिरी ख़िज़्र भी चक्कर में पड़े
अब उन्हें जल्वा-गह-ए-यार में अक्सर जाना
दाग़-ए-कम-हौसलगी दिल को गवारा न हुआ
वर्ना कुछ हिज्र में दुश्वार न था मर जाना
सादगी से ये गुमाँ है कि बस अब रहम किया
मुतमइन हूँ कि मुझे आप ने मुज़्तर जाना
नश्शे में भी तिरे 'बेख़ुद' की त'अल्ली न गई
बादा-ए-होश-रुबा को मय-ए-कौसर जाना
- पुस्तक : Nuquush Lahore (पृष्ठ 299)
- रचनाकार : Mohd Tufail
- प्रकाशन : Idara Farog-e-urdu, Lahore (Feb.1956 )
- संस्करण : Feb.1956
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