सातों फ़लक किए तह-ओ-बाला निकल गया
आख़िर शब-ए-फ़िराक़ में नाला निकल गया
वहशत ने मुझ पे अरसा-ए-हस्ती किया जो तंग
घबरा के सू-ए-आलम-ए-बाला निकल गया
सर दे दे याद-ए-गेसू-ए-जानाँ की चाह में
पीटा करो लकीर को काला निकल गया
याक़ूब-वार रोता मैं उस बुत के हिज्र में
यूसुफ़ मिरा ख़ुदा-ए-त'आला निकल गया
फ़ुर्क़त में उस की शिद्दत-ए-गिर्या कहाँ तलक
बरसा बरस के अब्र का झाला निकल गया
रोका किए मलाइका हफ़्त आसमान के
सातों फ़लक को तोड़ के नाला निकल गया
सोए न साकिनान-ए-मोहल्ला सहर तलक
बे-साख़्ता जो रात को नाला निकल गया
क्यूँ-कर न रोइए दिल-ए-गुम-गश्ता के लिए
नाज़-ओ-निअ'म से था जिसे पाला निकल गया
पीर-ए-मुग़ाँ फ़क़ीर को समझे शराब-ख़ोर
जिस मय-कदे में ले के पियाला निकल गया
जाता न घर से आप के ज़िद से रक़ीब की
लेकिन ब-पास-ए-ख़ातिर-ए-वाला निकल गया
झटका जो उलझी ज़ुल्फ़ को झुँझला के यार ने
हाले से मछली कान से बाला निकल गया
किस रश्क-ए-गुल की देखी क़बा उस ने तंग चुस्त
बाहर जो अपने जामे से लाला निकल गया
दाना था क्या हराम का रिज़्क़-ए-हलाल में
मुँह से जो ऐ करीम निवाला निकल गया
बूटा कहो न क़ामत-ए-दिलबर को शाइरो
अब सर्व से भी वो क़द-ए-बाला निकल गया
रौंदा क्या मैं ख़ार-ए-बयाबाँ को ऐ जुनून
हर इक बचा के पाँव का छाला निकल गया
कम्बल में अपने गर्म रहा मैं फ़क़ीर-ए-मस्त
क्या गया न दौर-ए-दार दूना निकल गया
फिर चल दिला न कूचा-ए-गेसू का क़स्द कर
है आज राह काट के काला निकल गया
उक्ता गया ब-तंग हुआ क्या करे ग़रीब
आख़िर तुम्हारा चाहने वाला निकल गया
मेहमान है फ़क़ीर है सुन लेंगे आप 'रिंद'
मुर्शिद का अपने कर के प्याला निकल गया
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