सभी कुछ साफ़ है मुबहम नहीं है
सभी कुछ साफ़ है मुबहम नहीं है
अजब आलम कहीं मातम नहीं है
जफ़ाओं का मियाँ मौसम नहीं है
उठे आवाज़ वो वेल्कम नहीं है
सदाक़त का यहाँ परचम नहीं है
झुका है सर मगर ये ख़म नहीं है
जो दानिस्ता झुकाए सर खड़े हो
वो बेगम है कोई रुस्तम नहीं है
अज़ीज़ों से भरी महफ़िल में यारों
बहुत से लोग हैं हमदम नहीं है
मसीहाई नहीं वो पारसाई
कहीं ईसा कहीं मरियम नहीं है
ख़ताओं पर नदामत और 'अहसन'
हमीं हम हैं मगर आदम नहीं है
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