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सर पे घर रखना चलन है अपना

अमीर हम्ज़ा साक़िब

सर पे घर रखना चलन है अपना

अमीर हम्ज़ा साक़िब

MORE BYअमीर हम्ज़ा साक़िब

    सर पे घर रखना चलन है अपना

    दश्त-ए-ग़ुर्बत ही वतन है अपना

    रूप अनूप उस का है राधा राधा

    श्याम सा साँवलापन है अपना

    ख़ुश्बू ख़ुश्बू है बयाबान-ए-हयात

    दर्द आहू-ए-ख़ुतन है अपना

    फ़स्ल-ए-गुल पर है इजारा अब के

    सब्ज़-फ़ाम अपना चमन है अपना

    तर्क-ए-बादा नहीं ये हुस्न-ए-शि’आर

    'इश्क़ जीने का चलन है अपना

    स्रोत :
    • पुस्तक : जिस्म का बर्तन सर्द पड़ा है (पृष्ठ 44)
    • रचनाकार : अमीर हमज़ा साक़िब
    • प्रकाशन : रेख़्ता पब्लिकेशंस (2019)
    • संस्करण : First

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