सर पे घर रखना चलन है अपना
सर पे घर रखना चलन है अपना
दश्त-ए-ग़ुर्बत ही वतन है अपना
रूप अनूप उस का है राधा राधा
श्याम सा साँवलापन है अपना
ख़ुश्बू ख़ुश्बू है बयाबान-ए-हयात
दर्द आहू-ए-ख़ुतन है अपना
फ़स्ल-ए-गुल पर है इजारा अब के
सब्ज़-फ़ाम अपना चमन है अपना
तर्क-ए-बादा नहीं ये हुस्न-ए-शि’आर
'इश्क़ जीने का चलन है अपना
- पुस्तक : जिस्म का बर्तन सर्द पड़ा है (पृष्ठ 44)
- रचनाकार : अमीर हमज़ा साक़िब
- प्रकाशन : रेख़्ता पब्लिकेशंस (2019)
- संस्करण : First
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