शब-ए-हयात में क़िंदील-ए-आरज़ू तिरा ग़म
शब-ए-हयात में क़िंदील-ए-आरज़ू तिरा ग़म
सुकूत-ए-जाँ में फ़रोज़ाँ सदा-ए-हू तिरा ग़म
रम-ए-नफ़स में मचलती हुई सदा तिरा नाम
रग-ए-गुलू में सुलगता हुआ लहू तिरा ग़म
हरीम-ए-ज़ात में रौशन चराग़ के मानिंद
रियाज़-ए-शौक़ में नख़्ल-ए-सुबुक-नुमू तिरा ग़म
मिरे शुऊ'र के ज़िंदाँ में इक दरीचा-ए-नूर
मरे वजूद के सहरा में आब-जू तिरा ग़म
लगन कोई भी हो उन्वान-ए-जुस्तुजू तिरा हुस्न
सुख़न किसी से हो मौज़ू-ए-गुफ़्तुगू तिरा ग़म
सुरूर-ओ-कैफ़ की सब महफ़िलों में देख लिया
कहीं शराब तिरा ग़म कहीं सुबू तिरा ग़म
ख़याल-ओ-फ़िक्र के सब मकतबों में पूछ लिया
मताअ'-ए-दानिश-ओ-तहक़ीक़-ओ-जुस्तजू तिरा ग़म
समा-ओ-सोज़ की सब मजलिसों में ढूँड लिया
मआल-ए-ज़िक्र-ओ-मुनाजात-ओ-हा-ओ-हू तिरा ग़म
हरम में हिर्ज़-ए-दिल-ओ-जान-ए-क़ुदसियाँ तिरा नाम
सनम-कदे में बरहमन की आरज़ू तिरा ग़म
सुकून-ए-क़ल्ब जो सोचा तो सर-बसर तिरी याद
नशात-ए-ज़ीस्त को देखा तो हू-बहू तिरा ग़म
ग़म-ए-जहाँ ग़म-ए-जानाँ ग़म-ए-दिगर ग़म-ए-ख़्वेश
जहान-ए-ग़म में हर इक ग़म की आबरू तिरा ग़म
हर एक रंज से गुज़रे हर इक ख़ुशी से गए
लिए फिरा जिन्हें इक उम्र कू-बकू तिरा ग़म
रही न कोई भी हसरत कि रख दिया मैं ने
हर एक जज़बा-ए-दिलकश के रू-ब-रू तिरा ग़म
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