शिकारी हैं बड़े शातिर बहाना ले के चलते हैं
शिकारी हैं बड़े शातिर बहाना ले के चलते हैं
वो तिरछी नज़रों में सीधा निशाना ले के चलते हैं
हमारी मेज़बानी से न घबराया करो लोगो
हम अपने साथ अपना आब-ओ-दाना ले के चलते हैं
ज़रा पहचान कर बतलाओ तो ये कौन हैं क्या हैं
कि बादल जिन के सर पर शामियाना ले के चलते हैं
कि हम अहल-ए-अदब हम क्या करेंगे हमसरी उन की
जो अपने साथ सरकारी ख़ज़ाना ले के चलते हैं
सभी को इल्म है गो फूल उन को कुछ नहीं कहते
ये भौंरे हैं मिज़ाज-ए-आशिक़ाना ले के चलते हैं
ठिकानों की न सोचो आप 'अज़हर' घर से तो निकलो
परिंदे साथ में कब आशियाना ले के चलते हैं
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