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सोचों की गहरी झील में उतरा हुआ हूँ मैं

अशरफ़ मोला नगरी

सोचों की गहरी झील में उतरा हुआ हूँ मैं

अशरफ़ मोला नगरी

MORE BYअशरफ़ मोला नगरी

    सोचों की गहरी झील में उतरा हुआ हूँ मैं

    पूछो किस ख़याल में डूबा हुआ हूँ मैं

    कब तक मिरे वजूद की ढूँडोगे किर्चियाँ

    शीशे की तरह टूट के बिखरा हुआ हूँ मैं

    पुर्सिश ज़रूर होगी ये मैदान-ए-हश्र में

    माज़ी को सोच सोच के सहमा हुआ हूँ मैं

    क्या पूछते हो मुझ से दिल-ए-मुज़्महिल का हाल

    रंग-ए-ख़याल-ए-यार से बहला हुआ हूँ मैं

    बे-नाम मंज़िलों का पता किस से पूछिए

    'अशरफ़' ये कैसी राह में खोया हुआ हूँ मैं

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