सोने चाँदी के परस्तार नहीं हो सकते
सोने चाँदी के परस्तार नहीं हो सकते
ऐ वतन हम कभी ग़द्दार नहीं हो सकते
हम से अश्कों की तिजारत नहीं होने वाली
हम किराए के अज़ा-दार नहीं हो सकते
हम मोहब्बत के पुजारी हैं ज़माने वालो
हम से दीवाने अदाकार नहीं हो सकते
दोस्ती ख़ुद से निबाही तो ये मालूम हुआ
दोस्त इस अह्द में दो चार नहीं हो सकते
ख़ूँ-बहा मिलना बड़ी बात है 'राही' इन से
मेरे क़ातिल भी गिरफ़्तार नहीं हो सकते
- पुस्तक : سائبان غزل (पृष्ठ 27)
- रचनाकार : راہی حمیدی
- प्रकाशन : انجمن درس ادب،چاندپور (2011)
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