सूनी सूनी सी है हर बज़्म-ए-सुख़न तेरे बाद
सूनी सूनी सी है हर बज़्म-ए-सुख़न तेरे बाद
चंद्र प्रकाश जौहर बिजनौरी
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सूनी सूनी सी है हर बज़्म-ए-सुख़न तेरे बाद
ख़त्म है सिलसिला-ए-अज़्मत-ए-फ़न तेरे बाद
अपने अफ़्कार से उर्दू को नवाज़ा तू ने
किस को उर्दू से है अब इतनी लगन तेरे बाद
कभी 'ग़ालिब' तो कभी 'मीर' के अंदाज़ में शेर
है मयस्सर किसे ये तर्ज़-ए-सुख़न तेरे बाद
बहर-ए-तख़ईल में अगली सी रवानी वो कहाँ
मौजज़न अब भी हैं गो गंग-ओ-जमन तेरे बाद
महफ़िल-ए-शेर-ओ-अदब में वो कहाँ जोश-ओ-ख़रोश
सर्द है गर्मी-ए-बाज़ार-ए-सुख़न तेरे बाद
किस से पाएँगे सवालों का सुकूँ-बख़्श जवाब
दिल को महसूस सी होती है घुटन तेरे बाद
कोई सुलझा न सका ज़ुल्फ़-ए-अदब बाद तिरे
पड़ गई गेसू-ए-उर्दू में शिकन तेरे बाद
तेरा हर शेर नया तेरा हर उस्लूब जदीद
कौन तोड़ेगा रिवायात-ए-कुहन तेरे बाद
इल्म-ओ-फ़न में तिरा सानी कोई मौजूद नहीं
नाज़ किस पर करें अब अहल-ए-वतन तेरे बाद
जान देने के लिए अपनी ब-नाम-ए-उर्दू
कौन पहुँचेगा सर-ए-दार-ओ-रसन तेरे बाद
कौन रक्खेगा यहाँ मै-कदा-ए-शेर की लाज
देखना है हमें रिंदों का चलन तेरे बाद
क्या गुज़रती है ख़बर है तुझे ऐ रूह-ए-'फ़िराक़'
दिल-ए-'जौहर' पे सर-ए-बज़्म-ए-सुख़न तेरे बाद
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