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तन्हाई के आलम में होती है बसर अपनी

सालिक लखनवी

तन्हाई के आलम में होती है बसर अपनी

सालिक लखनवी

MORE BYसालिक लखनवी

    तन्हाई के आलम में होती है बसर अपनी

    आबाद है बरसों से वीरानी-ए-दर अपनी

    किस आग से ठंडी हो सीमाबी-ए-शौक़-ए-दिल

    किस दर पे ये सर फोड़े बेताबी-ए-सर अपनी

    ये दोनों जहाँ ढूँडे ख़ुद को मगर पाया

    क्या जानें कहाँ से अब आएगी ख़बर अपनी

    शायान-ए-जुनूँ कम हैं ये दोनों जहाँ मिल कर

    वो राहगुज़र अपनी ये राहगुज़र अपनी

    जिस जा से चले थे हम हिर-फिर के वहीं पहुँचे

    अब और सुनाएँ क्या रूदाद-ए-सफ़र अपनी

    रुख़्सार की ताबानी ज़ुल्फ़ों के घने साए

    ये शाम भी अपनी है वो भी थी सहर अपनी

    जो कुछ भी नज़र आया वो कितना ग़लत ठहरा

    पर्दों ही से टकराई नाकाम नज़र अपनी

    हर गाम से आगे थी ता-हद्द-ए-नज़र मंज़िल

    किस गाम पे दम लेगी मंज़िल-ब-सफ़र अपनी

    नफ़रत की फ़ज़ाओं में सदियों के अँधेरों में

    इक इश्क़ का लम्हा थी ये उम्र-ए-शरर अपनी

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