तौर अपना है अलग ईं से अलग आँ से अलग
तौर अपना है अलग ईं से अलग आँ से अलग
गो किसी तौर नहीं हिकमत-ए-यज़्दाँ से अलग
ज़ीस्त इक और भी है क़ैद-ए-रग-ए-जाँ से अलग
सुब्ह-ए-ताबाँ से जुदा शाम-ए-ग़रीबाँ से अलग
ज़ुल्मत-ए-शब की तरह नूर-ए-शबिस्ताँ से अलग
ग़म-ए-दौराँ से अलग इश्क़-ए-निगाराँ से अलग
गर तिरे वास्ते दिल धड़के तो ज़िंदा तू है
दिल की आवाज़ है आवाज़-परेशाँ से अलग
जब कभी फ़िक्र मिरा रम्ज़-ए-अना से उलझा
आलम इक और बना आलम-ए-इम्काँ से अलग
उम्र यूँ हम ने गुज़ारी है ज़माने में 'जमील'
न रम-ए-ज़ीस्त में शामिल न ग़म-ए-जाँ से अलग
- पुस्तक : Shora-e-London (पृष्ठ 63)
- रचनाकार : Jauhar Zahiri
- प्रकाशन : Books From India (U.K) Ltd. 45, Museum Street, Londan W.C-1 (1985)
- संस्करण : 1985
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