तेरी आग़ोश में निढाल हूँ मैं
तेरी आग़ोश में निढाल हूँ मैं
भीगती रात का ज़वाल हूँ मैं
जितना सुलझाओगे और उलझोगे
वक़्त का इक बड़ा सवाल हूँ मैं
और पिछले-पहर गले मिल ले
डूबती रात का कमाल हूँ मैं
अपने अंदर सिमटता जाता हूँ
ख़ुश्क दरिया का एक जाल हूँ मैं
फ़ासले क़रनों के जुदाई में
तेरा माज़ी हूँ अपना हाल हूँ मैं
क्या समझ के हँसा है तू मुझ पर
तेरे ही आइने का बाल हूँ मैं
ये 'मुसव्विर' भँवर में आ के खुला
डूबने में भी बे-मिसाल हूँ मैं
- पुस्तक : Manghii dhire chal (पृष्ठ 79)
- रचनाकार : Musavvir Sabzwari
- प्रकाशन : Nazish Book Center (1971)
- संस्करण : 1971
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