तेरी बज़्म-ए-तरब की सरख़ुशी कुछ और कहती है
तेरी बज़्म-ए-तरब की सरख़ुशी कुछ और कहती है
मिरे माहौल की संजीदगी कुछ और कहती है
फ़ज़ा-ए-शाम-ए-मय-ख़ाना अभी कुछ और कहती है
हमारी शिद्दत-ए-तिश्ना-लबी कुछ और कहती है
फ़रोज़ाँ तो है बाम-ए-ज़िंदगी फ़न के चराग़ों से
मगर अहद-ए-हुनर की रौशनी कुछ और कहती है
तुम्हारी चाक-दामानी ब-फ़स्ल-ए-गुल बजा यारो
मज़ाक़-ए-इश्क़ की शाइस्तगी कुछ और कहती है
तक़ाज़ा है तुम्हारी ख़स्तगी का तुम ठहर जाओ
हमारी आबला-पाई अभी कुछ और कहती है
लहू रोते हुए गो उम्र गुज़री है मोहब्बत में
मगर क़िस्से की रंगीनी अभी कुछ और कहती है
अदा-ए-शोख़ जिन आँखों में होती थी तकल्लुम की
अब उन आँखों की गहरी ख़ामुशी कुछ और कहती है
बजा है पर्दा-दारी-ए-शिकस्त-ए-आरज़ू 'नाज़िम'
तिरे लब की मगर फीकी हँसी कुछ और कहती है
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