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तिरछी नज़र न हो तरफ़-ए-दिल तो क्या करूँ

आग़ा हज्जू शरफ़

तिरछी नज़र न हो तरफ़-ए-दिल तो क्या करूँ

आग़ा हज्जू शरफ़

MORE BYआग़ा हज्जू शरफ़

    तिरछी नज़र हो तरफ़-ए-दिल तो क्या करूँ

    लैला के ना-पसंद हो महमिल तो क्या करूँ

    ठहरे ख़ूँ-बहा सू-ए-क़ातिल तो क्या करूँ

    हक़ हो जो ख़ुद-बख़ुद मिरा बातिल तो क्या करूँ

    इक रंग को जहाँ में नहीं कोई मानता

    हर रंग में रहूँ मैं शामिल तो या करूँ

    पिसवाऊँ बे-गुनाह जो दिल को हिना के साथ

    पुर्सान-ए-हाल हो कोई आदिल तो क्या करूँ

    परवाना होने की भी इजाज़त नहीं मुझे

    आलम-फ़रेब है तिरी महफ़िल तो क्या करूँ

    जाता गुलू-बुरीदा भी उड़ कर गुलों के पास

    बाज़ू गया है तोड़ के बिस्मिल तो क्या करूँ

    लैला ये कह के जल्वा दिखाती है क़ैस को

    उड़ने लगे जो पर्दा-ए-महमिल तो क्या करूँ

    ख़ुद चाहता हूँ ज़ब्त करूँ दर्द-ए-शौक़ मैं

    दिल ही मिरा हो मुतहम्मिल तो क्या करूँ

    मुँह चूम लूँ कि गिर्द फिरूँ दौड़ दौड़ के

    दिल जो हाथ रोक ले क़ातिल तो क्या करूँ

    दम राह-ए-शौक़-ओ-ज़ौक़ में लेता नहीं कहीं

    इस पर भी तय हो जो ये मंज़िल तो क्या करूँ

    क्यूँ-कर जब्र दिल पे करूँ अपने इख़्तियार

    राहत में पड़े कोई मुश्किल तो क्या करूँ

    इक इक से पूछते हैं वो आईना देख कर

    माशूक़ पाऊँ प्यार के क़ाबिल तो क्या करूँ

    दे दूँ मैं राह-ए-इश्क़ में जान उस के नाम पर

    नाचार हूँ हो कोई साइल तो क्या करूँ

    टाँके जिगर के ज़ख़्म में क्यूँकर लगाने दूँ

    गुल तेरे बाग़ का हो मुक़ाबिल तो क्या करूँ

    आने को मना करते हो अच्छा आऊँगा

    ये तो कहो माने मिरा दिल तो क्या करूँ

    शायद मुझे जमाल दिखा दे वो कलीम

    नज़्ज़ारे का हूँ मुतहम्मिल तो क्या करूँ

    मर जाऊँ डूब कर 'शरफ़' उस पार यार है

    कश्ती हो कोई लब-ए-साहिल तो क्या करूँ

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