तिरी बज़्म से जो उठ कर तिरे जाँ-निसार आए
तिरी बज़्म से जो उठ कर तिरे जाँ-निसार आए
दिल ओ जाँ का सब असासा तिरे दर पे वार आए
तिरा इश्क़ बन गया है मिरी ज़ीस्त की मसाफ़त
कि मैं अब जहाँ भी जाऊँ तिरी रहगुज़ार आए
तिरी याद आज ऐसे दिल-ए-मुब्तला में आई
सर-ए-दश्त-ए-शाम जैसे शब-ए-नौ-बहार आए
ग़म-ए-ज़िंदगी मैं तुझ पर दिल ओ जाँ निसार कर दूँ
ग़म-ए-आरज़ू में ढल कर तू जो एक बार आए
तिरे इश्क़ की बदौलत कोई रंज हो कि राहत
सर-ए-ज़िंदगी जो आए सभी यादगार आए
- पुस्तक : TASTEER (पृष्ठ 433)
- रचनाकार : Nasiir Ahmed Nasir
- प्रकाशन : C-56,LDA Flats, Chanaab Block, Iqbaal Town, Lahore (Issue No. 9,10 July/August. 1999)
- संस्करण : Issue No. 9,10 July/August. 1999
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