तुम मिरे घर जो शब बसर करते
तुम मिरे घर जो शब बसर करते
रात भर जश्न बाम-ओ-दर करते
तुम जो आते मिरे तसव्वुर में
मेरे शे'रों को मो'तबर करते
छा गए होते सारी दुनिया पर
नेक आ'माल तुम अगर करते
जान लेते तुम उस की फ़ितरत को
साथ उस के कभी सफ़र करते
तुझ को मंज़िल का गर पता होता
हम तुझे अपना राहबर करते
मुल्तफ़ित क्यों हुए हो ग़ैरों पर
तुम मिरे हाल पर नज़र करते
हम को मिलता 'ज़की' अगर गुस्ताख़
ज़िंदगी उस की मुख़्तसर करते
- पुस्तक : ضبط فغاں(شعری مجموعہ) (पृष्ठ 152)
- रचनाकार : کوکب ذکی
- प्रकाशन : وشواس پبلی کیشنز ،حیدرآباد (2016)
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