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तुर्रा उसे जो हुस्न-ए-दिल-आज़ार ने किया

हैदर अली आतिश

तुर्रा उसे जो हुस्न-ए-दिल-आज़ार ने किया

हैदर अली आतिश

MORE BYहैदर अली आतिश

    तुर्रा उसे जो हुस्न-ए-दिल-आज़ार ने किया

    अंधेर गेसू-ए-सियह-ए-यार ने किया

    गुल से जो सामना तिरे रुख़्सार ने किया

    मिज़्गाँ ने वो किया कि जो कुछ ख़ार ने किया

    नाज़-ओ-अदा को तर्क मिरे यार ने किया

    ग़म्ज़ा नया ये तुर्क सितमगार ने किया

    अफ़्शाँ से कुश्ता अबरू-ए-ख़मदार ने किया

    जौहर से काम यार की तलवार ने किया

    क़ामत तिरी दलील क़यामत की हो गई

    काम आफ़्ताब-ए-हश्र का रुख़्सार ने किया

    मेरी निगह के रश्क से रौज़न को जान दी

    रख़्ना ये क़स्र-ए-यार की दीवार ने किया

    सौदा-ए-ज़ुल्फ़ में मुझे आया ख़याल-ए-रुख़

    मुश्ताक़ रौशनी का शब-ए-तार ने किया

    हसरत ही बोसा-ए-लब-ए-शीरीं की रह गई

    मीठा मुँह को तेरे नमक-ख़्वार ने किया

    फ़ुर्सत मिली गिर्या से इक लहज़ा इश्क़ में

    पानी मिरे लहू को इस आज़ार ने किया

    सीमाब की तरह से शगुफ़्ता हुआ मिज़ाज

    इक्सीर मुझ को मेरे ख़रीदार ने किया

    क़द में तो कर चुका था वो अहमक़ बराबरी

    मजबूर सर्व को तिरी रफ़्तार ने किया

    हैरत से पा-ब-गिल हुए रौज़न को देख कर

    दीवार हम को यार की दीवार ने किया

    पत्थर के आगे सज्दा क्या तू ने बरहमन

    काफ़िर तुझे तिरे बुत-ए-पिंदार ने किया

    काविश मिज़ा ने की रुख़-ए-दिलबर की दीद में

    पा-ए-निगाह से भी ख़लिश ख़ार ने किया

    'आशिक़ की तरह मैं जो लगा करने बंदगी

    आज़ाद दाग़ दे के ख़रीदार ने किया

    ए'जाज़ का 'अजब लब-ए-जाँ-बख़्श से नहीं

    पैग़म्बर उस को मुसहफ़-ए-रुख़्सार ने किया

    तुर्रा की तरह से दिल-ए-आशिक़ को पेच में

    किस किस लपेट से तिरी दस्तार ने किया

    आँखों को बंद कर के तसव्वुर में बाग़ के

    गुलशन क़फ़स को मुर्ग़-ए-गिरफ़्तार ने किया

    नालाँ हुआ मैं उस रुख़-ए-रंगीं को देख कर

    बुलबुल मुझे नज़ारा-ए-गुलज़ार ने किया

    हकला के मुझ से बात जो उस दिल-रुबा ने की

    किस हुस्न से अदा उसे तकरार ने किया

    उल्टा उधर नक़ाब तो पर्दे पड़े इधर

    आँखों को बंद जल्वा-ए-दीदार ने किया

    लज़्ज़त को तर्क कर तो हो दुनिया का रंज दूर

    परहेज़ भी दवा है जो बीमार ने किया

    ना-साफ़ आईना हो तो बद-तर है सँग से

    रौशन ये हाल हम को जलाकार ने किया

    हल्क़ा की नाफ़-ए-यार के ता'रीफ़ क्या करूँ

    गोल ऐसा दायरा नहीं परकार ने किया

    दीवान-ए-हुस्न-ए-यार की 'आतिश' जो सैर की

    दीवाना बैत अबरू-ए-ख़मदार ने किया

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