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टूट कर बिखरे हैं सपने सहन में

औसाफ़ शैख़

टूट कर बिखरे हैं सपने सहन में

औसाफ़ शैख़

MORE BYऔसाफ़ शैख़

    टूट कर बिखरे हैं सपने सहन में

    किस ने खींचे हैं ये रस्ते सहन में

    कौन देता है उदासी को फ़रेब

    कौन उगाता है ये चेहरे सहन में

    कोई समझा ही नहीं इक लफ़्ज़ भी

    गूँजते हैं कितने लहजे सहन में

    इक शजर भी नाम को घर में नहीं

    उड़ रहे हैं ख़ुश्क पत्ते सहन में

    जाने कब टूटे तिलिस्म-ए-तीरगी

    जाने कब उतरें सवेरे सहन में

    छोड़ जाता है कोई आँखें यहाँ

    खोल जाता है दरीचे सहन में

    रात फिर 'औसाफ़' याद आया कोई

    रात जैसे फूल महके सहन में

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