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उड़ानें अपनी 'आलीशान रखना

रज़ा वसफ़ी

उड़ानें अपनी 'आलीशान रखना

रज़ा वसफ़ी

MORE BYरज़ा वसफ़ी

    उड़ानें अपनी 'आलीशान रखना

    परों में ख़ून का दौरान रखना

    लबों पर सूरा-ए-रहमान रखना

    सलामत भीड़ में पहचान रखना

    कभी तो सातवें सुर तक पहुँचना

    कभी धीमे सुरों में तान रखना

    चराग़-ए-तन को है आँधी की हाजत

    बपा सीने में इक तूफ़ान रखना

    क़लम-ज़द हो पाए हर्फ़ कोई

    क़लम में अपने इतनी जान रखना

    जहाँ पर रास्ता हो साफ़ सीधा

    वहीं ठोकर का भी इम्कान रखना

    सुना पहुँचे हुए लोगों से हम ने

    सफ़र में मुख़्तसर सामान रखना

    मिले गर कोई बंजारा तो पूछो

    'अज़ीज़ों को कहाँ मेहमान रखना

    हवा ताज़ा पलट जाए कर

    खुला कमरे का रौशन-दान रखना

    बचा कर ख़्वाहिशों के जानवर से

    महकता प्यार का गुलदान रखना

    नज़र चेहरों में कुछ आए आए

    लबों पर बे-सबब मुस्कान रखना

    मोहब्बत हासिल-ए-ईमाँ है लोगो

    मोहब्बत दाख़िल-ए-ईमान रखना

    कहीं एहसास घुट कर मर जाए

    खुला इज़हार का मैदान रखना

    समुंदर का तलातुम कह रहा है

    सदा जज़्बात में हैजान रखना

    हम अपने दुश्मनों को जानते हैं

    तुम अपने दोस्तों का ध्यान रखना

    बदल एहसान का होता नहीं है

    मगर अच्छा नहीं एहसान रखना

    कई लाशों को दफ़नाना पड़ेगा

    कुशादा दिल का क़ब्रिस्तान रखना

    हमारे पास आओ हम से पूछो

    कमाँ में किस तरह पैकान रखना

    रखो जो चाहो इस्म-ए-ज़ात 'वसफ़ी'

    मगर हाँ 'उर्फ़ियत ज़ीशान रखना

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