उठाया ही नहीं जाता जो बार-ए-ज़िंदगी हम से
उठाया ही नहीं जाता जो बार-ए-ज़िंदगी हम से
किनारा कर चुकी शायद किसी की याद भी हम से
कभी मानूस थी कितनी बहार-ए-ज़िंदगी हम से
मगर दामन-कशाँ है आज-कल हर इक ख़ुशी हम से
शब-ए-ग़म इस तरह भी कट गई है बारहा अपनी
किसी की याद पहरों गुफ़्तुगू करती रही हम से
किसी के वास्ते तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ मश्ग़ला ठहरा
हमारे दिल पे जो गुज़री है वो पूछे कोई हम से
किसी को शाद-कामी है किसी को ना-मुरादी है
मिलेंगे राह-ए-उल्फ़त में कोई तुम से कोई हम से
तिरी चश्म-ए-करम की वो तवज्जोह ही नहीं वर्ना
कहाँ थी इस क़दर बरहम हमारी ज़िंदगी हम से
बसा-औक़ात हम ने मय-कदे के दर पे दस्तक दी
तबीअ'त जब किसी सूरत न बहलाई गई हम से
कहाँ तक ख़ुद-फ़रेबी में रहें हम मुब्तला 'आसी'
लबों पे लाई जा सकती नहीं झूटी हँसी हम से
- पुस्तक : زندگی کے مارے لوگ (पृष्ठ 34)
- रचनाकार : ودیا رتن آسی
- प्रकाशन : چیتن پرکاشن،پنجابی بھون،لدھیانہ (2017)
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