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वाए-तक़दीर क्या ये अलमिया नहीं

अतहर शकील

वाए-तक़दीर क्या ये अलमिया नहीं

अतहर शकील

MORE BYअतहर शकील

    वाए-तक़दीर क्या ये अलमिया नहीं

    सब हैं अपने मगर कोई अपना नहीं

    दीदा-ओ-दिल कि सुनसान सहरा हुए

    दिल में जज़्बा तो आँखों में सपना नहीं

    इश्क़ को तर्क करने में दिक़्क़त थी

    इश्क़ को मश्ग़ला हम ने समझा नहीं

    अब के मुझ से मिला वो तो ऐसा लगा

    वो ही चेहरा है लेकिन वो चेहरा नहीं

    फुंक रहा है बदन कुंज-ए-तन्हाई में

    सर पे छत है मगर माँ का साया नहीं

    मेरी नज़रों में दुनिया भी उक़्बा भी है

    आदमी हूँ मैं 'अतहर' फ़रिश्ता नहीं

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