वहाँ अब जा के देखें हम से क्या इरशाद करते हैं
वहाँ अब जा के देखें हम से क्या इरशाद करते हैं
क़ज़ा कहती है चलिए आप को वो याद करते हैं
जनाब-ए-वाइज़-ओ-पीर-ए-मुग़ाँ कामिल तो हैं दोनों
वो कुछ इरशाद करते हैं ये कुछ इरशाद करते हैं
पए ताज़ीम-ए-दर्द उठता है ऐ नावक-फ़गन दिल में
क़दम-रंजा जो तेरे नावक-ए-बेदाद करते हैं
कभी करते हैं हम बादा-परस्ती जा के का'बे में
कभी आ कर हरम से मय-कदे आबाद करते हैं
न छोड़ा साथ महशर तक हमारा तू वो मूनिस था
ग़म-ए-मरहूम तुझ को ख़ुल्द में हम याद करते हैं
वो हँस कर हम से कहते हैं पड़ें इस चाह पर पत्थर
जो हम उन से बयान-ए-सख़्ती-ए-फ़रहाद करते हैं
क़फ़स से छुट के भी हम क़ैद हैं दाम-ए-मोहब्बत में
'वसीम' आज़ाद कर के भी वो कब आज़ाद करते हैं
- पुस्तक : Aqa-e-sukhan waseem Khairabadi hayat aur karname (पृष्ठ 222)
- रचनाकार : Waseem Khairabadi
- प्रकाशन : Farid Bilgrami, Bilgrami Building Miyan Sarai Khairabad sitapur (2012)
- संस्करण : 2012
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