वो चश्म-ए-नाज़ अगर ख़ुद को वक़्फ़-ए-नाज़ करे
वो चश्म-ए-नाज़ अगर ख़ुद को वक़्फ़-ए-नाज़ करे
हर अहल-ए-क़ल्ब-ओ-नज़र ख़म सर-ए-नियाज़ करे
गदा को शाह तो शह को गदा-नवाज़ करे
जिसे भी जिस तरह चाहे वो सरफ़राज़ करे
हक़ीक़त-ए-बशरी क्या है क़तरा-ए-नाचीज़
ज़बाँ न हद से ज़ियादा बशर दराज़ करे
तिरा ग़ुलाम ब-सद-एहतिराम हाज़िर है
तिरी ख़ुशी है अगर इस को सरफ़राज़ करे
ख़ुदा है क़ादिर-ए-मुतलक़ बशर को लाज़िम है
उसी के सामने दस्त-ए-तलब दराज़ करे
जो बार-ए-हुस्न-ए-अज़ल कोह-ए-तूर सह न सके
क़ुबूल उस को मिरा क़ल्ब-ए-पाक-बाज़ करे
किसी के दम की जो रौनक़ है उस की हस्ती में
'ग़ुबार' क्यों न भला आज उस पे नाज़ करे
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