वो काश वक़्त के पहरे को तोड़ कर आते
वो काश वक़्त के पहरे को तोड़ कर आते
जो महव-ए-ख़्वाब हैं उन को झिंझोड़ कर आते
न उठती कोई निगाह-ए-ग़लत सर-ए-महफ़िल
वो अपने जल्वे को घर अपने छोड़ कर आते
उदास आँखों को देखा तो ये ख़याल आया
चमन के फूलों से शबनम निचोड़ कर आते
असा-ए-मूसा कभी हाथ लग गया होता
फ़िरऔन-ए-वक़्त का सर हम भी फोड़ कर आते
अगर थी चेहरे पे रौनक़ की आरज़ू उन को
मुसीबतों की कलाई मरोड़ कर आते
उधर न निकलेंगे वो नज़र-ए-बद का ख़दशा है
ख़बर ये होती तो हम आँखें फोड़ कर आते
सुना कि आज भी दानिशवरों में ख़ूब मची
'असर' भी आते तो हिम्मत बटोर कर आते
- पुस्तक : Shajare Sayadar (Poetry) (पृष्ठ 74)
- रचनाकार : Marghoob Asar Fatmi
- प्रकाशन : Arshia Publications (2014)
- संस्करण : 2014
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