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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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वो ख़ुद अपना दामन बढ़ाने लगे

फ़ारूक़ बख़्शी

वो ख़ुद अपना दामन बढ़ाने लगे

फ़ारूक़ बख़्शी

MORE BYफ़ारूक़ बख़्शी

    वो ख़ुद अपना दामन बढ़ाने लगे

    चलो आज आँसू ठिकाने लगे

    हमारा बुरा वक़्त जब टल गया

    फिर अहबाब मिलने-मिलाने लगे

    तिरी बरहमी में भी जान-ए-वफ़ा

    नवाज़िश के अंदाज़ आने लगे

    मदावा-ए-ग़म कुछ तो करना ही था

    मुसीबत पड़ी गुनगुनाने लगे

    मज़ा दे गया यार दौर-ए-फ़िराक़

    हमें तो ये दिन भी सुहाने लगे

    मोहब्बत से तौफ़ीक़-ए-इज़हार तक

    पहुँचते पहुँचते ज़माने लगे

    ये ग़ुंचे भी 'फ़ारूक़' क्या ख़ूब हैं

    खुली आँख और मुस्कुराने लगे

    स्रोत :
    • पुस्तक : Udas Lamhon Ke Mausam (Poetry) (पृष्ठ 51)
    • रचनाकार : Farooq Bakhshi
    • प्रकाशन : Modern Publishing House (2003)
    • संस्करण : 2003

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