यक-ब-यक क्यूँ बंद दरवाज़े हुए
यक-ब-यक क्यूँ बंद दरवाज़े हुए
थे वो आयात-ए-मुबीं ओढ़े हुए
बहर-ए-ज़ुल्मत का सफ़र दर-पेश है
हैं हवा में बाल-ओ-पर जलते हुए
बंद कमरों से निकलते ही नहीं
ऐ हवा क्या तेरे मंसूबे हुए
आब ओ साया एक धोका ही सही
इस से पहले भी कई धोके हुए
बर्क़ थी मौसम शगूफ़ों का न था
शीशे की सड़कों पे दीवाने हुए
उस की आँखों में थी कैसी रौशनी
देखने पाए न थे अंधे हुए
- पुस्तक : Sarsabz (पृष्ठ 37)
- रचनाकार : Krishan Kumar Toor
- प्रकाशन : Sarsabz Dharamshala (April to September 2013)
- संस्करण : April to September 2013
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