यक़ीं सब कुछ गुमाँ कुछ भी नहीं है
यक़ीं सब कुछ गुमाँ कुछ भी नहीं है
जहाँ में जावेदाँ कुछ भी नहीं है
फ़राएज़ हैं अमल है या ख़ुदा है
सिवा उस के जहाँ कुछ भी नहीं है
अक़ीदत राह दिखलाती रही है
निशान-ए-बे-निशाँ कुछ भी नहीं है
ज़मीं तेरी फ़लक तेरा ख़ुदाया
हमारा तो यहाँ कुछ भी नहीं है
दिल-ए-पुर-दर्द पहलू में लिए हैं
कहें कैसे कि हाँ कुछ भी नहीं है
ख़ला है एक सीने में हमारे
यहीं कुछ था जहाँ कुछ भी नहीं है
तमन्ना किस लिए है ज़िंदगी की
अगर उम्र-ए-रवाँ कुछ भी नहीं है
तलाश-ए-मुस्तक़िल ही ज़िंदगी है
यक़ीं है ये गुमाँ कुछ भी नहीं है
तसव्वुर आप का लाया वहाँ पर
जहाँ पर आसमाँ कुछ भी नहीं है
हमारी अक़्ल पर पर्दा पड़ा है
हक़ीक़त में निहाँ कुछ भी नहीं है
'सदफ़' के दिल में है वहदत का जल्वा
मगर विर्द-ए-ज़बाँ कुछ भी नहीं है
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