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ये 'अहद-ए-नौ हो मुबारक तुझे मगर साक़ी

फ़रूक़ अरगली

ये 'अहद-ए-नौ हो मुबारक तुझे मगर साक़ी

फ़रूक़ अरगली

MORE BYफ़रूक़ अरगली

    ये 'अहद-ए-नौ हो मुबारक तुझे मगर साक़ी

    निज़ाम-ए-मयकदा अबतर है ग़ौर कर साक़ी

    उड़ान तेज़ है इतनी कि थम गए मंज़र

    रुका रुका सा है लम्हात का सफ़र साक़ी

    फ़ज़ा में तैर रहे हैं क़ज़ा के जरसूमे

    बसे हैं दश्त में बारूद के नगर साक़ी

    झुलस रहा है त'अस्सुब की आग में गुलशन

    क़यामतें हैं क़यामत से पेशतर साक़ी

    पड़े हैं ख़ाक पे बेहोश आदमी-ज़ादे

    ख़ुदाई करते हैं महलों में जानवर साक़ी

    वो देख जहल-ओ-ज़लालत की मस्नद-आराई

    फ़राज़-ए-दार पे लटके हैं दीदा-वर साक़ी

    कहाँ वो रिंद वो पैमाने और वो सहबा

    गए ज़मानों की बातें याद कर साक़ी

    मुझे ख़बर है तिरे ख़ुम में मय नहीं बाक़ी

    मिरे ही ख़ून से अब मेरा जाम भर साक़ी

    स्रोत :
    • पुस्तक : Word File Mail By Salim Saleem

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