ये कह के रख़्ने डालिए उन के हिजाब में
ये कह के रख़्ने डालिए उन के हिजाब में
मुफ़्ती सदरुद्दीन आज़ुर्दा
MORE BYमुफ़्ती सदरुद्दीन आज़ुर्दा
ये कह के रख़्ने डालिए उन के हिजाब में
अच्छे बुरे का हाल खुले क्या नक़ाब में
ख़ुर्शीद-ज़ार होवे ज़मीं दे झटक ज़रा
सौ आफ़्ताब हैं तिरे गर्द-ए-नक़ाब में
बे-एतिदालियाँ मिरी ज़र्फ़-ए-तुनक से हैं
था नक़्स कुछ न जौहर-ए-सहबा-ए-नाब में
उठने में सुब्ह के ये कहाँ सर-गिरानियाँ
ज़ाहिद ने मय का जल्वा ये देखा है ख़्वाब में
तहक़ीक़ हो तो जानूँ कि मैं क्या हूँ क़ैस क्या
लिक्खा हुआ है यूँ तो सभी कुछ किताब में
मैं और ज़ौक़-ए-बादा-कशी ले गईं मुझे
ये कम-निगाहियाँ तिरी बज़्म-ए-शराब में
इमदाद-ए-चश्म क्या हो लगी दिल को आग जब
जलने के बा'द ख़ूँ नहीं रहता कबाब में
हैं दोनों मिस्ल-ए-शीशा ये सामान-ए-सद-शिकस्त
जैसा है मेरे दिल में नहीं है हबाब में
अनवार-ए-फ़िक्र से न हुआ कुछ भी इंकिशाफ़
जितना बढ़े हम और बढ़ी जा हिजाब में
ये उम्र और इश्क़ है 'आज़ुर्दा' जा-ए-शर्म
हज़रत ये बातें फबती हैं अहद-ए-शबाब में
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