ये मुझ से पूछते हैं चारागर क्यूँ
ये मुझ से पूछते हैं चारागर क्यूँ
कि तू ज़िंदा तो है अब तक मगर क्यूँ
जो रस्ता छोड़ के मैं जा रहा हूँ
उसी रस्ते पे जाती है नज़र क्यूँ
थकन से चूर पास आया था उस के
गिरा सोते में मुझ पर ये शजर क्यूँ
सुनाएँगे कभी फ़ुर्सत में तुम को
कि हम बरसों रहे हैं दर-ब-दर क्यूँ
यहाँ भी सब हैं बेगाना ही मुझ से
कहूँ मैं क्या कि याद आया है घर क्यूँ
मैं ख़ुश रहता अगर समझा न होता
ये दुनिया है तो मैं हूँ दीदा-वर क्यूँ
- पुस्तक : LAVA (पृष्ठ 105)
- रचनाकार : JAVED AKHTAR
- प्रकाशन : RAJ KAMAL PARKASHAN (2012)
- संस्करण : 2012
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