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ये नज़्म-ए-गुरेज़ाँ है बरहम-ज़दनी पहले

नुशूर वाहिदी

ये नज़्म-ए-गुरेज़ाँ है बरहम-ज़दनी पहले

नुशूर वाहिदी

MORE BYनुशूर वाहिदी

    ये नज़्म-ए-गुरेज़ाँ है बरहम-ज़दनी पहले

    ज़ाहिद की की तरफ़ से हो तौबा-शिकनी पहले

    फूलों के तबस्सुम पर रोना अभी आता है

    देखी है इन आँखों ने वीराँ-चमनी पहले

    यूँ हुस्न के चेहरे पर आई नहीं बरनाई

    सौ शाम के पर्दों में इक सुब्ह छनी पहले

    मालूम किसे आख़िर इस ख़ाक-ए-तमन्ना से

    परवाना उठा पहले या शम्अ बनी पहले

    ये ऐश के हंगामे उड़ते हुए बादल हैं

    होती है निगाहों में हर छाँव घनी पहले

    इक नीम-तबस्सुम से होता है चमन ज़िंदा

    ऐसी नफ़सी सीखे ग़ुंचा-दहनी पहले

    हर नग़्मा 'नुशूर' अब भी मम्नून-ए-तग़ज़्ज़ुल है

    सिखलाई ग़ज़ल ने ही शीरीं-सुख़नी पहले

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