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ये पीरान-ए-कलीसा-ओ-हरम ऐ वा-ए-मजबूरी

अल्लामा इक़बाल

ये पीरान-ए-कलीसा-ओ-हरम ऐ वा-ए-मजबूरी

अल्लामा इक़बाल

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    रोचक तथ्य

    बाल-ए-जिब्रील

    ये पीरान-ए-कलीसा-ओ-हरम वा-ए-मजबूरी

    सिला इन की कद-ओ-काविश का है सीनों की बे-नूरी

    यक़ीं पैदा कर नादाँ यक़ीं से हाथ आती है

    वो दरवेशी कि जिस के सामने झुकती है फ़ग़्फ़ूरी

    कभी हैरत कभी मस्ती कभी आह-ए-सहर-गाही

    बदलता है हज़ारों रंग मेरा दर्द-ए-महजूरी

    हद-ए-इदराक से बाहर हैं बातें इश्क़ मस्ती की

    समझ में इस क़दर आया कि दिल की मौत है दूरी

    वो अपने हुस्न की मस्ती से हैं मजबूर-ए-पैदाई

    मिरी आँखों की बीनाई में हैं असबाब-ए-मस्तूरी

    कोई तक़दीर की मंतिक़ समझ सकता नहीं वर्ना

    थे तुर्कान-ए-उस्मानी से कम तुर्कान-ए-तैमूरी

    फ़क़ीरान-ए-हरम के हाथ 'इक़बाल' गया क्यूँकर

    मयस्सर मीर सुल्ताँ को नहीं शाहीन-ए-काफ़ूरी

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