ज़ब्त गर हद से बढ़ा तो ज़लज़ला भी आएगा
ज़ब्त गर हद से बढ़ा तो ज़लज़ला भी आएगा
तेरे मेरे दरमियाँ फिर फ़ासला भी आएगा
ऐसा लगता है कि अब तो क़ाफ़िले को लूटने
राहज़न भी आएँगे और रहनुमा भी आएगा
ले के ख़ाली आँख का मश्कीज़ा मत सहरा में जा
इस सफ़र में तिश्नगी का मरहला भी आएगा
हिज्र का मौसम जब आएगा तिरी यादें लिए
दिल भी तड़पेगा तड़पने का मज़ा भी आएगा
ज़ुल्म अगर जारी रहा तो देखना फिर एक दिन
ख़ून उगलेगी ज़मीं ये मरहला भी आएगा
देख 'तासीर' उस के आने के न इतने ख़्वाब देख
आँख के हिस्से में वर्ना रतजगा भी आएगा
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