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ज़ख़्मों को मरहम कहता हूँ क़ातिल को मसीहा कहता हूँ

क़ैसर-उल जाफ़री

ज़ख़्मों को मरहम कहता हूँ क़ातिल को मसीहा कहता हूँ

क़ैसर-उल जाफ़री

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    ज़ख़्मों को मरहम कहता हूँ क़ातिल को मसीहा कहता हूँ

    जो दिल पर गुज़रा करती है मैं पर्दा पर्दा कहता हूँ

    ज़ुल्फ़ों को घटाएँ कहता हूँ रुख़्सार को शो'ला कहता हूँ

    तुम जितने अच्छे लगते हो मैं उस से अच्छा कहता हूँ

    अब रीत यही है दुनिया की तुम भी बनो बेगाना कहीं

    इल्ज़ाम नहीं धरता तुम पर इक जी का धड़कना कहता हूँ

    अरबाब-ए-चमन जो कहते हैं वो नाम मुझे मा'लूम नहीं

    जिस शाख़ पे कोई फूल हो मैं उस को तमन्ना कहता हूँ

    'क़ैसर' वो नवा ला-हासिल है जो के लबों पर लहराए

    छू ले जो दिलों की गहराई मैं उस को नग़्मा कहता हूँ

    स्रोत :
    • पुस्तक : Mujalla Dastavez (पृष्ठ 227)
    • रचनाकार : Aziz Nabeel
    • प्रकाशन : Edarah Dastavez (2010)
    • संस्करण : 2010

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