ज़रूर पाँव में अपने हिना वो मल के चले
ज़रूर पाँव में अपने हिना वो मल के चले
न पहुँचे आज भी घर तक मिरे वो कल के चले
ये दोस्ती है कि है साथ आग पानी का
जो निकली आह तो साथ अश्क भी निकल के चले
लहद से लाई क़यामत है पाँव पड़ पड़ कर
ठहर ठहर के चले हम मचल मचल के चले
हज़ारों ठोकरें हर इक क़दम पर उस में हैं
ये राह-ए-इश्क़ है क्यूँ कर कोई सँभल के चले
ये मुझ को वस्ल की शब हाए मौत क्यूँ आई
हिना लगा के जो आए थे हाथ मल के चले
तुम्हारी राह में चलने की है ख़ुशी ऐसी
कि साथ नक़्श-ए-क़दम भी उछल उछल के चले
मज़ा तो आए जो लें रिंद बढ़ के हाथों-हाथ
मज़ा तो आए कहीं से जो मय उबल के चले
अदा से नाज़ से चलना क़यामत उन का था
जो मल के दिल को कलेजे मसल मसल के चले
चले वो शम्अ' जलाने मज़ार पर किस के
कि साथ साथ अदू आग हो के जल के चले
तुम्हारे गेसू-ए-पुर-पेच ने लिया हम को
कि मुँह में साँप के या मुँह में हम अजल के चले
उठा जनाज़ा तो बोली ये ख़ाना-बरबादी
नया मकान है कपड़े नए बदल के चले
हज़ारों दाग़ हैं दिल में जिगर में लाखों ज़ख़्म
'रियाज़' महफ़िल-ए-ख़ूबाँ से फूल-फल के चले
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