ज़िंदा हुआ है आज तू मरने के ब'अद भी
ज़िंदा हुआ है आज तू मरने के ब'अद भी
आया है पास बाढ़ उतरने के ब'अद भी
किन पानियों की ओर मुझे प्यास ले चली
नीले समुंदरों में उतरने के ब'अद भी
नंगी हक़ीक़तों से पड़ा वास्ता हमें
शीशों से अक्स अक्स गुज़रने के ब'अद भी
काली रुतों के ख़ौफ़ ने जीने नहीं दिया
दरिया से मौज मौज उभरने के ब'अद भी
हर लम्हा ज़िंदगी को नया रूप चाहिए
इक बोझ बन गई है सँवरने के ब'अद भी
आँखों में मेरी जागती रातों का कर्ब है
हर ज़ख़्म तेरी याद का भरने के ब'अद भी
- पुस्तक : Tahreek Silver Jubilee Number (पृष्ठ 433)
- रचनाकार : Gopal Mittal, Makhmoor Saeedi, Prem Gopal Mittal
- प्रकाशन : Monthly Tahreek, 9, Ansari Market, Daryaganj, New Delhi-110002 (July, Aug., Sep. Oct. 1978Issue No. 4,5,6,7,,Volume No. 26)
- संस्करण : July, Aug., Sep. Oct. 1978Issue No. 4,5,6,7,,Volume No. 26
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