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बाल-साहित्य1073
आंदोलन64 नॉवेल / उपन्यास1918 राजनीतिक19 शोध एवं समीक्षा3726 कहानी 233
लेख 50
उद्धरण 107
लीडर जब आँसू बहा कर लोगों से कहते हैं कि मज़हब ख़तरे में है तो इस में कोई हक़ीक़त नहीं होती। मज़हब ऐसी चीज़ ही नहीं कि ख़तरे में पड़ सके, अगर किसी बात का ख़तरा है तो वो लीडरों का है जो अपना उल्लू सीधा करने के लिए मज़हब को ख़तरे में डालते हैं।
पहले मज़हब सीनों में होता था आजकल टोपियों में होता है। सियासत भी अब टोपियों में चली आई है। ज़िंदाबाद टोपियाँ।
लघु कथा 29
तंज़-ओ-मज़ाह 1
रेखाचित्र 24
ड्रामा 59
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वीडियो 87
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बाल-साहित्य1073
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