मसनवी
उर्दू की नज़्म-शायरी का वो काव्य-रूप जिसमें पूरी नज़्म एक ही बह्र में लिखे गए हम-क़ाफ़िया (एक जैसे क़ाफ़ियों वाले) शेरों पर आधारित होती है और हर शेर का क़ाफ़िया अलग होता है। मसनवी में कोई क़िस्सा या विषय विस्तार से बयान किया जाता है। मीर हसन की ‘सेहरुल-बयान’, दया शंकर नसीम की ‘गुलज़ार-ए-नसीम’, मिर्ज़ा शौक़ की ‘ज़हर-ए-इश्क़’ मशहूर मसनवियाँ हैं।
उर्दू आलोचना के संस्थापकों में शामिल/महत्वपूर्ण पूर्वाधुनिक शायर/मिजऱ्ा ग़ालिब की जीवनी ‘यादगार-ए-ग़ालिब लिखने के लिए प्रसिद्ध
19वीं सदी में लखनऊ के अग्रणी शायरों में से एक, प्रख्यात मसनवी गुलज़ार-ए-नसीम के रचयिता
विश्व-साहित्य में उर्दू की सबसे बुलंद आवाज़। सबसे अधिक सुने-सुनाए जाने वाले महान शायर
उर्दू के पहले बड़े शायर जिन्हें 'ख़ुदा-ए-सुख़न' (शायरी का ख़ुदा) कहा जाता है