इलिएट्स-गर्ल्स-कॉलेज और कुल पाक ओ हिन्द मुशाएरा
रोचक तथ्य
Shaukat Zaidi, the founder of Elite College, wrote this ghazal for the grand Indo-Pak Mushaira that was to be held on May 9 under the auspices of Income Tax Commissioner, Karachi.
एक ऐसे दौर में अक़दार पर जब है सवाल
मह्फ़िल-ए-शेर-ओ-अदब करना है इक अम्र-ए-मुहाल
मह्फ़िल-ए-शेर-अो-सुख़न और वो भी इंटरनैशनल
है उन्ही का काम जिन से अब भी ज़िंदा है ग़ज़ल
है अदब ज़िंदा कि कुछ ''ख़ुद्दाम'' ऐसे अब भी हैं
ख़िदमत-ए-उर्दू को जिन के पास पैसे अब भी हैं
ये इदारे भी न करते काम अगर फ़ानूस का
कुछ न पूछो हाल क्या होता दिल-ए-मायूस का
ये इदारे भी न होंगे जब तो है इस का भी डर
चलती-फिरती शाएरी होगी यहाँ हर रोड पर
गशती शाएर रोड पर जा कर लगाए ये सदा
शेर सन लो रोड पर हाज़िर है ख़ादिम आप का
शेर सन लो एक मिस्रा भी नहीं जिस में ग़लत
पैसे देना या न देना दाद दे देना फ़क़त
ठेले पर दीवान लाया है ये शख़्स इस से मिलो
इस की ग़ज़लों का नया मजमूआ दो रूपे किलो
काम लो शाएर से ख़िदमत जिस का क़ौमी फ़र्ज़ है
रोड पर आ कर वो ख़ुद कहता है मतला अर्ज़ है
क़ाफ़िए की चूल ढीली है तो क़सवा लो अभी
हिल रही हैं जो रदीफ़ें हम से ठुकवा लो सभी
आज ये मंज़र नज़र आते नहीं जो चार-सू
वज्ह इस की कुछ इदारे हैं अदब की आबरू
वो इदारे हैं जो अब भी सरपरस्त-ए-शेर-ओ-फ़न
इन में है एक इलिएट-कॉलेज भी मेमार-ए-वतन
'ताबिश' ओ 'कैफ़ी' 'क़तील' ओ 'बेदी' ओ अहमद-'नदीम'
इलिएट-कॉलेज में आया है जो शाएर है अज़ीम
इलिएट-कॉलेज में यौम-ए-'फ़ैज़' मनवाया गया
याँ 'रईस'-अमरोहवी को याद फ़रमाया गया
इलिएट-कॉलेज ही वो वाहिद इदारा है यहाँ
ज़ेर-ए-तालीम अब जहाँ हैं लड़कियाँ ही लड़कियाँ
दौर-ए-आमेज़िश में जब हर चीज़ में है इम्तिज़ाज
इलिएट-कॉलेज में ख़ालिस लड़कियाँ पढ़ती हैं आज
इलिएट-कॉलेज से पाया है जो सीधा रास्ता
लड़कियाँ हैं ज़ेवर-ए-तालीम से आरास्ता
दौर-ए-हाज़िर में तो हर माँ बाप की है ये दुआ
लड़की दे तू इलिएट-कॉलेज में पढ़वाए ख़ुदा
मुझ से कल ये कहता था एक एजुकेटेड एडीट
इलिएट-कॉलेज के बानी होंगे टी-एस-इलिएट
मैं ने उस को जब बताया शौकत-ए-ज़ैदी का नाम
बोला फिर उन दोनों ने मिल कर क्या होगा ये काम
कौन समझाए उसे जिस में कमी नॉलिज की है?
शान-ओ-शौकत शौकत-ए-ज़ैदी से इस कॉलेज की है
- पुस्तक : Feesabilillah (पृष्ठ 160)
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