ख़सारे पर ख़सारे का बजट तय्यार होता है
ख़सारे पर ख़सारे का बजट तय्यार होता है
मईशत की तरक़्क़ी का मगर प्रचार होता है
तिजारत जिस तरह बाज़ार में करता है पंसारी
अदब में भी वही दिन रात कारोबार होता है
अगर मरने की ठानी है तो क्या सोचा है ये तुम ने
गिरानी में कफ़न मिलना बहुत दुश्वार होता है
मियाँ जाते तो हो सर पर लिए फ़रियाद की गठरी
पता भी है तुम्हें थाने में थानेदार होता है
गिले शिकवे से क्या हासिल कि दौर-ए-बे-उसूली में
जो चलता है उसूलों पर ज़लील-ओ-ख़्वार होता है
निगाहों में जो मंज़र हो वही सब कुछ नहीं होता
बहुत कुछ और भी प्यारे पस-ए-दीवार होता है
डकारें मारते कारों में ना-कारे नज़र आएँ
मगर मरता है जो भूखों कोई फ़नकार होता है
चलो हम भी मिला दें अपनी ख़ुद्दारी को मिट्टी में
''कि दाना ख़ाक में मिल कर गुल-ए-गुलज़ार होता है''
ख़ुदी उस की बुलंदी की तरफ़ जा ही नहीं सकती
किराया-दार कुछ भी हो किराएदार होता है
जो अपना भाई है रहता है वो पाँव की ठोकर में
मगर जोरू का भाई तो गले का हार होता है
बुढ़ापे में भी टीवी पर वो आँखें सेंक लेते हैं
वो जब चाहें हसीनों का उन्हें दीदार होता है
ख़ुशामद में ही आमद है 'ज़फ़र' तू भी ख़ुशामद कर
उसी के फ़ैज़ से बेड़ा सभों का पार होता है
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