लग गए हैं फ़ोन लगने में जो पच्चीस साल
रोचक तथ्य
"25 saal baad Telephone laga, magar laga to!" According to a news report from Nawa-e-Waqt Karachi, the Federal Ombudsman, Mr. Sardar Muhammad Iqbal Sahib, has issued a directive in the name of the top officials of the Telephone Department to give a telephone to a citizen of Karachi who had applied for a telephone 25 years ago. The Federal Ombudsman also said in his directive that the telephone department should pay Rs 5,000 to the complainant as compensation. I wrote this poem without any prior directive.
लग गए हैं फ़ोन लगने में जो पच्चीस साल
इस ख़बर से क्यूँ हुआ पैदा दिलों में इश्तिआल
आदमी अल्लाह का शाकिर रहे हर हाल में
बाज़ पौदों पर समर आता है सौ सौ साल में
शुक्र की जा है हुई शाख़-ए-तमन्ना बार-आवर
देर से आया मगर आया तो डाली पर समर
मोहतसिब आला की कोशिश काबिल-ए-तहसीन है
फ़ोन का लगना कमाल-ए-अद्ल है आईन है
इस का ग़म क्या क्यूँ लगे इस काम में पच्चीस साल
इन दफ़ातिर में नहीं है ये कोई पहली मिसाल
लग गया इस काम में टाइम तो क्यूँ है बरहमी?
शुक्र अदा कीजे कि ज़िंदा रह गया ये आदमी
मोहकमा टी-ऐंड-टी का इस को टहलाता रहा
फिर भी ये इंसान अपने दिल को बहलाता रहा
हौसला में वाक़ई वो शख़्स रखता है कमाल
मुब्तला जो आज़माइश में रहा पच्चीस साल
आख़िर इक दिन ख़त्म ये लम्बी कहानी हो गई
मोहतसिब आला की इस पर मेहरबानी हो गई
शख़्स-ए-मज़कूरा न बदला और इस दौरान में
जाने कितने दौर बदले अपने पाकिस्तान में
जाने कितनी बार बदला रंग-ए-दौर-ए-इक्तदार
हो गईं तब्दील सरकारें यहाँ कितनी ही बार
बिस्तर-ए-सरकार कितनी बार बंध बंध कर खुला
एक ने बिस्तर लपेटा एक का बिस्तर खुला
सुर्ख़ियाँ बदलीं मुसलसल शौक़ के मज़मून की
रह गई क़ाएम मगर दरख़्वास्त टेलीफ़ोन की
इतने साल इस मुल्क में कब एक सा टाइम रहा
लाल फ़ीता फिर भी अपनी वज़्अ पर क़ाएम रहा
दाद दो टी-ऐंड-टी वालों की राह-ए-रास्त को
इतने अर्से दाबे रखा सिर्फ़ इक दरख़्वास्त को
ये सलीक़ा सिर्फ़ टी-ऐंड-टी को है माैला की देन
एक फ़ाइल को किया इतने बरस तक मेंटेन
ख़ैरियत गुज़री कहीं ग़ाएब न फ़ाइल हो गई
और किसी अफ़सर की बीनाई न ज़ाइल हो गई
दाद दो उस को भी जो इस वक़्त तक ज़िंदा रहा
जिस को हर दिन इंतिज़ार-ए-सुब्ह-ए-आइंदा रहा
नौजवानी में जो इक दरख़्वास्त दी थी फ़ोन की
अब हुई मंज़ूर जब कम है हरारत ख़ून की
शुक्र अदा कीजे हुई तो ख़त्म शाम-ए-इंतिज़ार
इस का क्या शिकवा कि बूढ़ा हो गया उम्मीद-वार
लग गया फ़ोन आ गई साअत मुबारकबाद की
बाप की अर्ज़ी से क़िस्मत खुल गई औलाद की
सारे घर वाले पिएँगे घर में जब जाम आएगा
फ़ोन वालिद का सही औलाद के काम आएगा
- पुस्तक : Feesabilillah (पृष्ठ 64)
- रचनाकार : Dilawar Figar
- प्रकाशन : educational publishing house delhi (2011)
- संस्करण : 2011
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