जल्वा-ए-मुसहफ़-ए-क़ुरआँ हैं रसूल-ए-'अरबी
जल्वा-ए-मुसहफ़-ए-क़ुरआँ हैं रसूल-ए-'अरबी
नूर-ए-ईमाँ से दरख़्शाँ हैं रसूल-ए-'अरबी
मा'नी-ए-सूरा-ए-रहमाँ हैं रसूल-ए-'अरबी
मसदर-ए-ताबिश-ए-बुरहाँ हैं रसूल-ए-'अरबी
जिस ने ज़र्रों को सिखाया है सितारों का चलन
वो मशिय्यत का दबिस्ताँ हैं रसूल-ए-'अरबी
उन के दस्तूर में ख़ंदाँ है बहारों का निज़ाम
हुस्न-ए-तरतीब-ए-गुलिस्ताँ हैं रसूल-ए-'अरबी
उन से पहले था कहाँ रब्ब-ए-दो-‘आलम का शु'ऊर
मज़हर-ए-जलवा-ए-यज़्दाँ हैं रसूल-ए-'अरबी
ऐ बशर कितना बड़ा है बशरिय्यत का मक़ाम
मेज़बाँ 'अर्श है मेहमाँ हैं रसूल-ए-'अरबी
हुक्म दें वो तो मह-ओ-मेहर के रुक जाएँ क़दम
हाकिम-ए-गर्दिश-ए-दौराँ हैं रसूल-ए-'अरबी
राह-रौ रात का जंगल है सर-ए-राह तो क्या
रहबर-ए-नूर-बदामाँ हैं रसूल-ए-'अरबी
ग़म हैं यादें हैं शब-ए-दर्द है तन्हाई है
अब मिरी ज़ीस्त का सामाँ हैं रसूल-ए-'अरबी
कोई हमदर्द नहीं दर्द की दीवारों में
वज्ह-ए-तस्कीन-ए-दिल-ओ-जाँ हैं रसूल-ए-'अरबी
ग़ैर-मुमकिन भी है उन के लिए मुमकिन 'ज़ौक़ी'
फ़ाएज़-ए-मसनद-ए-इम्काँ हैं रसूल-ए-'अरबी
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